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कविता

रफ्तार

हरिओम राजोरिया


अलग-अलग लोगों के लिए
अलग-अलग तरह से काम करती है रफ्तार
एक वे जो भागती रेलगाड़ी पर सवार हैं
और जल्द पहुँचना चाहते हैं अपने घर

दूसरे वे जो कभी रेलगाड़ी में नहीं बैठे
जिनके अपने घर ही नहीं
डरे-सहमे से भागती गाड़ी को देखते हैं

एक रफ्तार आगे की तरफ बढ़ाती है कदम
दूसरी कान पर हथौड़े की तरह पड़ती है


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हिंदी समय में हरिओम राजोरिया की रचनाएँ